top of page

"सोशल मीडिया का बाप"

अनिल कुमार सागर, लेखक व पत्रकार

वरिष्ठ लेखक- स्वतंत्र पत्रकार, पूर्व उप सम्पादक: उजाले की ओर,"कीमया-ऐ-जीवन", राष्ट्रीय समाचार पत्र,  03, आनन्द कॉलोनी,चन्दौसी- 244412, उ.प्र.

Screenshot 2019-01-02 at 23.35.41.png
Home: Welcome
Home: Blog2

क्या है "तुर्या" या तुरीय अवस्था ?

तुर्या अवस्था.........हम लोग तीन अवस्थाओं में रहते हैं। जागृत अवस्था में हमारा ध्यान यहाँ वहाँ भटकता है; और हम हमारे चित्त को खराब करते हैं। दूसरा वह होता है, जिसमें हम सोते हैं, जब हम सोते हैं तब भी हमारे अतीत की और इधर उधर की बातें हमारे पास आती हैं। फिर हम और गहरी नींद में चले जाते हैं - जिसे कहते हैं सुषुप्ति। इस स्थिति में आप गहरी नींद में होते हैं और सपने देखते हैं जो कि सच भी हो सकते हैं। आप मेरा सपना भी देख सकते हैं। यह अचेतन का ईश्वरीय भाग है, जहाँ सुन्दर जानकारियां प्रदान की जाती हैं। जैसे कि मान लीजिये मैं इटली में आने वाली हूँ, और वहाँ के लोगों को सुषुप्ति में इस बात का पता लग जाये।

........किन्तु चौथी अवस्था को तुर्या अवस्था कहते हैं। दो अवस्थाएं और होती हैं। आप लोग तुर्या स्थिति में हैं जिसमें आप निर्विचार जागरूक अवस्था में होते हैं। जब कोई विचार नहीं है - जरा सोचिये जब कोई विचार नहीं होता - आपको अबोध बनना पड़ता है, आपको चेतना को जानना पड़ता है, आप किसी से मोह में नहीं रह सकते । तो यही निर्विचार की स्थिति जिसमें आप लोग हैं , यही तुर्या स्थिति है और इस स्थिति में यह चार पंखुड़ियां जो आपके अन्दर हैं , इन्हें आपके सहस्रार में खुलना होगा । ये आपके हृदय से मस्तिष्क तक जाती हैं। और तब आप असल में यह समझ पायेंगे कि भगवान क्या हैं ? यह वह समय है जब आपको असली ज्ञान प्राप्त होता है।🕉


समाधि (परिवर्तन की स्थिति)
क्या है तुर्या या तुरीय अवस्था ?


🔯🔆सात चक्र (Seven Chakra's) और अपार सिद्धियां, जानिए कैसे होगा संभव🔆🔯


🔆1. मूलाधार चक्र: यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9 लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं।

जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

📿मंत्र: लं

चक्र जगाने की विधि: मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्‍यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

🔮प्रभाव: इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।


🔆2. स्वाधिष्ठान चक्र: यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं।

अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।

📿मंत्र: वं

कैसे जाग्रत करें: जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं।

मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।

🔮प्रभाव: इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है।

सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।


🔆3. मणिपुर चक्र: नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस दल कमल पंखुरियों से युक्त है।

जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

📿मंत्र: रं

कैसे जाग्रत करें: आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।

🔮प्रभाव: इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है।

सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।


🔆4. अनाहत चक्र: हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है।अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे।

हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।

📿मंत्र: यं

कैसे जाग्रत करें: हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।

🔮प्रभाव: इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।


🔆5. विशुद्ध चक्र: कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो सोलह पंखुरियों वाला है।

सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।

📿मंत्र: हं

कैसे जाग्रत करें: कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

🔮प्रभाव: इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है।

इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।


🔆6. आज्ञाचक्र: भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है।

सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।

📿मंत्र: ऊं

कैसे जाग्रत करें: भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

🔮प्रभाव: यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।


🔆7. सहस्रार चक्र: सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं।

यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है।

ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।

कैसे जाग्रत करें: मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है।लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।

🔮प्रभाव: शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है।

यही मोक्ष का द्वार है।


तुर्या अवस्था  का आरेख
तुर्या अवस्था का आरेख

प्रस्तुतकर्ता:

अनिल कुमार सागर,

वरिष्ठ लेखक - स्वतंत्र पत्रकार ,

पूर्व उप सम्पादक :"उजाले की ओर",कीमया-ऐ-जीवन", ज्ञान रंजन ट्रेजर",राष्ट्रीय समाचार पत्र ,

सम्पर्कः- 03, आनन्द कॉलोनी, चन्दौसी-244412, यू.पी.

email:anilkumarsagar786@gmail.com, anilkumarsagar01@outlook.com,

Comments


Home: Subscribe

CONTACT

Screenshot 2019-01-03 at 00.58.37.png
Home: Contact

09719674350

©2019 - 2025 by सोशल मीडिया का बाप. Proudly created with Wix.com

bottom of page