हमारी निंदा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए
- अनिल कुमार सागर,लेखक स्वतंत्र- पत्रकार
- Nov 10, 2020
- 1 min read
Updated: Nov 13, 2020
दूसरा आदमी हमें खराब समझे तो इसका कोई मूल्य नहीं है भगवान दूसरे की गवाही नहीं लेते

दूसरा आदमी अच्छा कहे तो आप अच्छे हो जाओगे , ऐसा कभी नहीं होगा। अगर आप बुरे हो तो बुरे ही रहोगे। अगर आप अच्छे हो तो अच्छे ही रहोगे, भले ही पूरी दुनिया बुरी कहे। लोग निंदा करे तो मन में आनंद आना चाहिए।
एक संत ने कहा है –
मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है, तो बिना प्रयत्न के ही मेरी उन पर कृपा हो गयी ।
क्योंकि कल्याण चाहने वाले पुरुष तो दूसरों के संतोष के लिए अपने कष्ट पूर्वक कमाए हुए धन का भी परित्याग कर देते हैं।
हम पाप नहीं करते , किसी को दुःख नहीं देते, फिर भी हमारी निंदा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए , प्रत्युत प्रसन्नता होने चाहिए। भगवान की तरफ से जो होता है , सब मंगलमय ही होता है। इसलिए मन के विरुद्ध बात हो जाए तो उसमें आनंद मनाना चाहिए।मन का हो जाये तो अच्छा, यदि मन का नहीं हो तो और ज्यादा अच्छा क्योंकि वह भगवान की इच्छा के अनुसार सर्वोत्तम हो रहा है!
Comments