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"सोशल मीडिया का बाप"

अनिल कुमार सागर, लेखक व पत्रकार

वरिष्ठ लेखक- स्वतंत्र पत्रकार, पूर्व उप सम्पादक: उजाले की ओर,"कीमया-ऐ-जीवन", राष्ट्रीय समाचार पत्र,  03, आनन्द कॉलोनी,चन्दौसी- 244412, उ.प्र.

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भिन्न-भिन्न दिशाओं से आनेवाली हवा का स्वास्थ्य पर प्रभाव।

1)  पूर्व दिशा की हवा : भारी, गर्म, स्निग्ध, दाहकारक, रक्त तथा पित्त को दूषित करनेवाली होती है। परिश्रमी, कफ के रोगों से पीड़ित तथा कृश व दुर्बल लोगों के लिए हितकर है। यह हवा चर्मरोग, अर्श, कृमिरोग, मधुमेह, आमवात, संधिवात इत्यादि को बढ़ाती है।


2)  दक्षिण दिशा की हवा : खाद्य-पदार्थों में मधुरता बढ़ाती हैं। पित्त व रक्त के विकारों में लाभप्रद है। वीर्यवान, बलप्रद व आँखों के लिए हितकर है।


3)  पश्चिम दिशा की हवा : तीक्ष्ण, शोषक व हलकी होती है। यह कफ, पित्त, चर्बी एवं बल को घटाती है व वायु की वृद्धि करती है।


4)  उत्तर दिशा की हवा : शीत, स्निग्ध, दोषों को अत्यंत कुपित करनेवाली, ग्लानिकारक व शरीर में लचीलापन लानेवाली है। स्वस्थ मनुष्य के लिए | बलप्रद व मधुर है।

5)  अग्नि कोण की हवा दाहकारक एवं रुक्ष है। नैऋत्य कोण की हवा रुक्ष है लेकिन जलन पैदा नहीं करती। वायव्य कोण की हवा कट और ईशान कोण की हवा तिक्त है।


6)  ब्राह्ममुहूर्त (सूर्योदय से सवा दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्योदय तक का समय) में सभी दिशाओं की हवा सब प्रकार के दोषों से रहित होती है। अतः इस वेला में वायुसेवन बहुत ही हितकर होता है। वायु की शुद्धि प्रभातकाल में तथा सूर्य की किरणों, वर्षा, वृक्षों एवं ऋतु-परिवर्तन से होती है।


7)  पंखे की घूमती हवा तीव्र होती है। ऐसी हवा उदानवायु को विकृत करती है और व्यानवायु की गति को रोक देती है, जिससे चक्कर आने लगते हैं। तथा शरीर के जोड़ों को आक्रांत करनेवाले गठिया आदि रोग हो जाते हैं। खस, मोर के पंखों तथा बेत के पंखों की हवा स्निग्ध एवं हृदय को आनंद देनेवाली होती है।


8)  अशुद्ध स्थान की वायु का सेवन करने से पाचन-दोष, खाँसी, फेफड़ों का प्रदाह तथा दुर्बलता आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति अपनी नासिका की सिधाई में २१ इंच की दूरी तक की वायु ग्रहण करता है और फेंकता है। अतः इस बात को सदैव ध्यान में रखकर अशुद्ध स्थान की वायु के सेवन से बचना चाहिए।

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9)  जो लोग अन्य किसी भी प्रकार की कोई कसरत नहीं कर सकते, उनके लिए टहलने की कसरत बहुत जरूरी है। इससे सिर से लेकर पैरों तक की करीब 200 मांसपेशियों की स्वाभाविक ही हलकी-हलकी कसरत हो जाती है। टहलते समय हृदय की धड़कन की गति 1 मिनट में 72 धार से बढ़कर 82 बार हो जाती है और श्वास भी तेजी से चलने लगता है, जिससे अधिक ऑक्सीजन रक्त में पहुँचकर उसे साफ करता है।

टहलना कसरत की सर्वोत्तम पद्धति मानी गयी है क्योंकि कसरत की अन्य पद्धतियों की अपेक्षा टहलने से हृदय पर कम जोर पड़ता है तथा शरीर के एक-दो नहीं बल्कि सभी अंग अत्यंत सरल और स्वाभाविक तरीके से सशक्त हो जाते हैं।

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