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"सोशल मीडिया का बाप"

अनिल कुमार सागर, लेखक व पत्रकार

वरिष्ठ लेखक- स्वतंत्र पत्रकार, पूर्व उप सम्पादक: उजाले की ओर,"कीमया-ऐ-जीवन", राष्ट्रीय समाचार पत्र,  03, आनन्द कॉलोनी,चन्दौसी- 244412, उ.प्र.

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पुरातन ग्रंथों के अनुसार भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी?

Updated: Jul 19, 2020

कृपया पूरा लेख पढ़ें!

भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी, ये जान लेना आवश्यक है। इस शिक्षा को लेकर अपने विचारों में परिवर्तन लाएं !

वैज्ञानिक विद्याओं की पढ़ाई

१. अग्नि विद्या ( Metallergy )

२. वायु विद्या ( Aviation )

३. जल विद्या ( Navigation )

४. अंतरिक्ष विद्या ( Space Science)

५. पृथ्वी विद्या ( Environment & Ecology)

६. सूर्य विद्या ( Solar System Studies )

७. चन्द्र व लोक विद्या ( Lunar Studies )

८. मेघ विद्या ( Weather Forecast )

९. पदार्थ विद्युत विद्या ( Battery )

१०. सौर ऊर्जा विद्या ( Solar Energy )

११. दिन रात्रि विद्या

१२. सृष्टि विद्या ( Space Research )

१३. खगोल विद्या ( Astronomy)

१४. भूगोल विद्या (Geography )

१५. काल विद्या ( Time )

१६. भूगर्भ विद्या (Geology and Mining )

१७. रत्न व धातु विद्या ( Gemmology and Metals )

१८. आकर्षण विद्या ( Gravity )

१९. प्रकाश विद्या ( Optics)

२०. तार संचार विद्या ( Communication )

२१. विमान विद्या ( Aviation )

२२. जलयान विद्या ( Water , Hydraulics Vessels )

२३. अग्नेय अस्त्र विद्या ( Arms and Amunition )

२४. जीव जंतु विज्ञान विद्या ( Zoology Botany )

२५. यज्ञ विद्या ( Material Sc)

अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की

वाणिज्य ( Commerce )

भेषज (Pharmacy)

शल्यकर्म व चिकित्सा (Diagnosis and Surgery)

कृषि (Agriculture )

पशुपालन ( Animal Husbandry )

पक्षिपलन ( Bird Keeping )

पशु प्रशिक्षण ( Animal Training )

यान यन्त्रकार ( Mechanics)

रथकार ( Vehicle Designing )

रतन्कार ( Gems )

सुवर्णकार ( Jewellery Designing )

वस्त्रकार ( Textile)

कुम्भकार ( Pottery)

लोहकार (Metallurgy)

तक्षक (Toxicology)

रंगसाज (Dying)

रज्जुकर (Logistics)

वास्तुकार ( Architect)

पाकविद्या (Cooking)

सारथ्य (Driving)

नदी जल प्रबन्धक (Dater Management)

सुचिकार (Data Entry)

गोशाला प्रबन्धक (Animal Husbandry)

उद्यान पाल (Horticulture)

वन पाल (Forestry)

नापित (Paramedical)

अर्थशास्त्र (Economics)

तर्कशास्त्र (Logic)

न्यायशास्त्र (Law)

नौका शास्त्र (Ship Building)

रसायनशास्त्र (Chemical Science)

ब्रह्मविद्या (Cosmology)

न्यायवैद्यकशास्त्र (Medical Jurisprudence) - अथर्ववेद

क्रव्याद (Postmortem) --अथर्ववेद ...आदि विद्याओ क़े तंत्रशिक्षा क़े वर्णन हमें वेद और उपनिषद में मिलते है


यह सब विद्या गुरुकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ गुरुकुल लुप्त हुए तो यह विद्या भी लुप्त होती गयी।

आज अंग्रेज मैकाले पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट हो रहा तब ऐसे समय में गुरुकुल के पुनः उद्धार की आवश्यकता है।



कुछ प्रसिद्ध भारतीय प्राचीन ऋषि मुनि वैज्ञानिक एवं संशोधक


पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।


अश्विनीकुमार: मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।


धन्वंतरि: इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।


महर्षि भारद्वाज: आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।


महर्षि विश्वामित्र: ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।

ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।


महर्षि गर्गमुनि: गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।


महर्षि पतंजलि: आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।


महर्षि कपिल मुनि: सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना की शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।


महर्षि कणाद: ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।


महर्षि सुश्रुत: ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्यचिकित्सक कहा है।


जीवक: सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थी।


महर्षि बौधायन: बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या एलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।


महर्षि भास्कराचार्य: आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।


महर्षि चरक: चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीकों और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिए अधिक ध्यान रखा गया है। चरक आनुवांशिकी (अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।


ब्रह्मगुप्त: 7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।


महर्षि अग्निवेश: ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।


महर्षि शालिहोत्र: इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।


व्याडि: ये रसायनशास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।


आर्यभट्ट: इनका जन्म 476 ई. में कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) पटना में हुआ था | ये महान खगोलशास्त्र और व गणितज्ञ थे | इन्होने ही सबसे पहले सूर्ये और चन्द्र ग्रहण की वियाख्या की थी | और सबसे पहले इन्होने ही बताया था की धरती अपनी ही धुरी पर धूमती है | और इसे सिद्ध भी किया था | और यही नही इन्होने हे सबसे पहले पाई के मान को निरुपित किया।


महर्षि वराहमिहिर: इनका जन्म 499 ई . में कपित्थ (उज्जेन ) में हुआ था | ये महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्र थे | इन्होने पंचसिद्धान्तका नाम की किताब लिखी थी जिसमे इन्होने बताया था की , अयनांश , का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर होता होता है | और इन्होने शून्य और ऋणात्मक संख्याओ के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया |


हलायुध: इनका जन्म 1000 ई . में काशी में हुआ था | ये ज्योतिषविद , और गणितज्ञ व महान वैज्ञानिक भी थे | इन्होने अभिधानरत्नमाला या मृतसंजीवनी नमक ग्रन्थ की रचना की | इसमें इन्होने या की पास्कल त्रिभुज ( मेरु प्रस्तार ) का स्पष्ट वर्णन किया है।पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।


हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में शिवकर बापू जी तलपडे ने हवाई जहाज बनाकर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस टाइम के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ-साथ हजारों लोग मौजूद थे जहाज देखने के लिए

उसके बाद एक डेली ब्रदर नाम की इंग्लैंड की कंपनी ने शिवकर बापू जी तलपडे के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया।


आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है महर्षि भारद्वाज की विमानशास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी।

अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्जवाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को मरे थे सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी उस टाइम भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में

ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ सर्जन मेलबर्न में सुश्रुत ऋषि की प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है।



15 साल साल पहले का 2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के वैज्ञानिक और इंजीनियर देखकर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा ।


भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए!

1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 परसेंट था और सन उन्नीस सौ में एक परसेंट पर आ गया आखिर कारण क्या है ? कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 लोग भूख से मर गए कुछ दिन के अंतराल में ।


एक बेहद खास बात कुछ लोग कहते हैं इतना ही भारत समप्रीत था इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया?

लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया नहीं तो एक बात बताओ भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम बताओ एवर थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार कैसे करने लगे, उससे पहले क्यों नहीं करते थे।


नोट: यह आलेख सनातन हिन्दू विचार व्हाट्सप्प ग्रुप से संकलित है, हमें अच्छा लगा इस लिए प्रकाशित कर रहे हैं। झूट सच का स्वयं निर्णय करें।



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